Kabir Das Ka Jivan Parichay | Kabir Das Biography In Hindi


कबीर दास: संत, कवि और समाज सुधारक

कबीर दास भारतीय इतिहास के एक ऐसे महान संत और कवि थे जिन्होंने अपने दोहों और भजनों के माध्यम से न केवल समाज को जागरूक किया, बल्कि धर्म, भक्ति और मानवता का मार्ग भी दिखाया। उनका जन्म 15वीं सदी में वाराणसी (काशी) के पास लहरतारा नामक स्थान पर हुआ था। उनके जन्म को लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं, लेकिन माना जाता है कि वे न तो हिंदू थे और न मुसलमान। उनकी परवरिश एक मुस्लिम जुलाहा परिवार में हुई, और यह उनकी शिक्षा का प्रारंभिक आधार बनी।

कबीर का जीवन परिचय

कबीर का जन्म 1398 ईस्वी के आसपास हुआ था। उनके माता-पिता के बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं है, लेकिन कई विद्वानों का मानना है कि उन्हें नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपत्ति ने गोद लिया था। कबीर का पालन-पोषण एक साधारण परिवार में हुआ, जहाँ उन्हें गरीबी और सामाजिक संघर्षों का सामना करना पड़ा। बचपन से ही कबीर का झुकाव आध्यात्म की ओर था, और उन्होंने गुरु रामानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु माना।

गुरु रामानंद से मुलाकात

कबीर के जीवन में गुरु रामानंद की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि कबीर ने एक बार गंगा घाट पर सोने का नाटक किया, ताकि रामानंद का पवित्र स्पर्श उन्हें प्राप्त हो सके। रामानंद ने गलती से 'राम-राम' कह दिया, जिसे कबीर ने अपना मंत्र मान लिया। यह घटना कबीर के आध्यात्मिक जीवन का प्रारंभिक चरण साबित हुई।

कबीर की शिक्षा और विचारधारा

कबीर की शिक्षा पारंपरिक रूप से नहीं हुई थी। वे पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनके विचार और लेखन ने समाज पर गहरी छाप छोड़ी। उनकी शिक्षा का मुख्य स्रोत उनके अनुभव और समाज में हो रही घटनाएँ थीं। कबीर ने अपने समय की धार्मिक पाखंडता और जातिवाद का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने न केवल हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीतियों को उजागर किया, बल्कि इस्लाम के रूढ़िवाद पर भी सवाल उठाए।

उनके विचार सरल लेकिन गहन थे। वे मानते थे कि ईश्वर एक है, और उसे पाने का मार्ग सत्य, प्रेम और सेवा है। उन्होंने धार्मिक भेदभाव, मूर्तिपूजा, और कर्मकांड का विरोध करते हुए भक्ति और सच्चे मन से ईश्वर की आराधना पर बल दिया।

कबीर की रचनाएँ

कबीर दास की रचनाएँ उनके दोहों, साखियों और भजनों के रूप में प्रचलित हैं। उनकी भाषा साधारण और बोलचाल की थी, जिसे 'सधुक्कड़ी' या 'पंचमेल खिचड़ी' कहा जाता है। उनके साहित्य में ब्रजभाषा, अवधी, खड़ी बोली और पंजाबी का मिश्रण मिलता है। उनकी रचनाएँ 'बीजक', 'सखी ग्रंथ', और 'अनुराग सागर' में संकलित हैं।

कबीर के प्रसिद्ध दोहे:

कबीर के दोहे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। उनके दोहे गहरे आध्यात्मिक और नैतिक संदेश देते हैं। उदाहरण के लिए:

"बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोई।"

"पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।"

"माला फेरत जुग गया, मिटा न मन का फेर। कर का मनका छोड़ दे, मन का मनका फेर।"

"साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।"

"साईं इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय।"


कबीर का समाज सुधारक रूप

कबीर दास ने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और रूढ़िवादिता को तोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि ईश्वर को प्राप्त करने के लिए किसी विशेष धर्म या पूजा पद्धति की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने ब्राह्मणवाद और जातिवाद का विरोध करते हुए एक समतावादी समाज की कल्पना की। उनके विचार धर्म और समाज की सीमाओं को तोड़कर मानवता को सर्वोपरि मानते थे।

कबीर की शिक्षाओं का मुख्य सार:ईश्वर एक है: कबीर ने यह संदेश दिया कि ईश्वर के कई रूप हो सकते हैं, लेकिन वह एक ही है।

सादगी और सत्य: उन्होंने सादगीपूर्ण जीवन और सत्य बोलने पर जोर दिया।
भक्ति मार्ग: कबीर ने कर्मकांडों को त्यागकर प्रेम और भक्ति के मार्ग को अपनाने की सलाह दी।
समता और समानता: उन्होंने जाति, धर्म, और वर्ग भेदभाव का खंडन किया।

कबीर की मृत्यु

कबीर दास की मृत्यु 1518 ईस्वी के आसपास मानी जाती है। उनकी मृत्यु के बाद भी उनके अनुयायी 'कबीर पंथ' के रूप में उनके विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं। कबीर की समाधि के विषय में भी विवाद है। हिंदू मानते हैं कि वे काशी में मृत्यु को प्राप्त हुए, जबकि मुसलमानों का दावा है कि वे मगहर में गए थे। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु के बाद, उनके शव को लेकर हिंदुओं और मुसलमानों में विवाद हुआ, लेकिन जब चादर हटाई गई तो वहां फूल पड़े थे, जिन्हें दोनों समुदायों ने अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार विभाजित कर दिया।

कबीर की प्रासंगिकता

आज के युग में भी कबीर के विचार प्रासंगिक हैं। उनके दोहे न केवल नैतिकता और आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाते हैं, बल्कि हमें यह भी सिखाते हैं कि सच्चाई, प्रेम और करुणा के साथ जीवन जीना ही असली धर्म है।

कबीर दास ने एक ऐसे समाज का सपना देखा था, जहाँ लोग जाति, धर्म, और भाषा के भेदभाव से ऊपर उठकर एकता और भाईचारे का पालन करें। उनका जीवन और साहित्य हमें सिखाता है कि असली पूजा इंसानियत की सेवा और सच्चाई के मार्ग पर चलने में है।