वीर सावरकर की जीवनी
वीर सावरकर, जिनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी, समाज सुधारक, लेखक और राजनीतिज्ञ थे। उनका जीवन संघर्ष, देशभक्ति और स्वाधीनता के प्रति समर्पण की मिसाल है। उन्होंने भारत की आजादी के लिए न केवल सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपनाया, बल्कि सामाजिक सुधार और हिंदू राष्ट्रवाद के विचारों को भी प्रखरता से प्रस्तुत किया।प्रारंभिक जीवन
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगूर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दामोदर पंत और माता का नाम राधाबाई था। वे अपने तीन भाइयों और एक बहन में दूसरे नंबर के थे। बचपन से ही सावरकर में नेतृत्व करने और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का साहस था।
शिक्षा और प्रारंभिक संघर्ष
सावरकर की प्रारंभिक शिक्षा नासिक में हुई। उनकी अद्भुत बौद्धिक क्षमताओं के कारण उन्हें उच्च शिक्षा के लिए पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में प्रवेश मिला। इसी दौरान उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के राष्ट्रीय आंदोलन से प्रेरित होकर क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया।
अभिनव भारत संगठन की स्थापना
1904 में सावरकर ने अपने साथियों के साथ मिलकर ‘अभिनव भारत’ नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की। इस संगठन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन को समाप्त कर भारत को स्वतंत्र कराना था। उन्होंने गुप्त बैठकों, सशस्त्र प्रशिक्षण और साहित्यिक प्रचार के माध्यम से युवाओं को प्रेरित किया।
विदेश यात्रा और भारत के प्रति समर्पण
1906 में सावरकर ने शैक्षिक उद्देश्यों से इंग्लैंड की यात्रा की और वहां 'इंडिया हाउस' में रहकर भारतीय छात्रों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया। उन्होंने 1857 के भारतीय विद्रोह को प्रथम स्वाधीनता संग्राम का दर्जा देते हुए "1857 का स्वतंत्रता संग्राम" नामक ग्रंथ लिखा, जो ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया।
गिरफ्तारी और कालापानी की सजा
1909 में ब्रिटिश अधिकारी जैक्सन की हत्या के आरोप में सावरकर को गिरफ्तार कर लिया गया। 1910 में उन्हें भारत लाया गया और दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उन्हें अंडमान और निकोबार द्वीप के कुख्यात सेलुलर जेल में भेजा गया, जिसे ‘कालापानी’ कहा जाता था।
सेलुलर जेल में सावरकर ने अमानवीय यातनाओं को सहन किया, फिर भी उन्होंने अपना मनोबल नहीं खोया। जेल में उन्होंने अपने संघर्ष की कविताएं दीवारों पर लिखीं, जिनमें आजादी के प्रति उनकी अटूट आस्था झलकती है।
रिहाई और राजनीतिक जीवन
सावरकर को 1924 में जेल से रिहा किया गया लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने से रोक दिया। उन्होंने सामाजिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करते हुए जातिवाद, अस्पृश्यता और समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन चलाया।
हिंदुत्व और विचारधारा
सावरकर ने 'हिंदुत्व: हिंदू कौन है?' नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा को स्पष्ट किया। उनका मानना था कि भारत को एक शक्तिशाली और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के लिए सांस्कृतिक एकता और राष्ट्रीय गर्व आवश्यक हैं।
स्वतंत्रता के बाद का जीवन
भारत के स्वतंत्र होने के बाद सावरकर का राजनीतिक प्रभाव धीरे-धीरे कम हो गया। उन्हें महात्मा गांधी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया, लेकिन उन्हें साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया।
निधन
विनायक दामोदर सावरकर ने 26 फरवरी 1966 को मुंबई में अंतिम सांस ली। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय में ‘आत्मार्पण’ का मार्ग अपनाया और स्वेच्छा से मृत्यु को स्वीकार किया।
विरासत और योगदान
वीर सावरकर की देशभक्ति, अदम्य साहस और विचारों की गूंज आज भी भारतीय समाज में सुनाई देती है। उनका जीवन स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमिट अध्याय है। उन्होंने जो प्रेरणा दी, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मार्गदर्शक बन चुकी है।
भारत सरकार ने उन्हें 2003 में संसद भवन में उनके चित्र का अनावरण कर सम्मानित किया। उनके जीवन और योगदान पर अनेक पुस्तकें और फिल्में भी बनी हैं।
वीर सावरकर की जीवनी से यह स्पष्ट होता है कि सच्ची देशभक्ति में संघर्ष, बलिदान और समाज के प्रति समर्पण का अद्वितीय संगम होता है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि यदि हमारे भीतर देश के प्रति समर्पण और कठिनाइयों का सामना करने का जज्बा हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है।