icse question- भारतीय संस्कृति में ‘अतिथि को देवता के समान माना जाता है। वर्तमान परिस्थितियों में यह मान्यता कहाँ तक सत्य के रूप में दिखाई दे रही है ? अतिथि कब बोझ बन जाता है और किस प्रकार ? विचारों द्वारा समझाइए।
परिचय:
"अतिथि देवो भव" यह एक प्राचीन भारतीय कहावत है जो विशेष रूप से भारतीय संस्कृति के अभिन्न हिस्से के रूप में माना जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है कि अतिथि हमारे लिए देवता के समान होता है।
यह मानवता के नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा करता है और सदाचार की महत्वपूर्ण बातों को सिखाता है। इस भावना के पीछे भारतीय संस्कृति के समृद्ध और समर्पित आदर्श हैं, लेकिन इस मूल विचार के बावजूद इसके नकारात्मक पहलुओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
सकारात्मक पहलुओं की प्रमुखता:
"अतिथि देवो भव" का मतलब होता है कि हमें अपने आगंतुकों का सद्व्यवहार करना चाहिए और उन्हें सम्मान देना चाहिए। यह एक मानव संबंधों की गहरी भावना को दर्शाता है जो मानवता की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ हैं। जब हम अपने अतिथियों का स्वागत करते हैं, तो हम उन्हें आत्मीयता और गर्मजोशी से संबोधित करते हैं। यह भी हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक समृद्धि के एक महत्वपूर्ण कारक होते हैं क्योंकि विभिन्न विचारों और परंपराओं का परिचय होता है।
यह मानवता के आदर्श और नैतिकता की प्रतीक होती है। हमारे पूर्वजों ने इस मूल विचार के आधार पर एक आदर्श जीवन की मिसाल प्रस्तुत की है। अनेक कथाएँ और किस्से इसे साक्षात्कार कराते हैं, जैसे कि महाभारत में कुंती का अग्निपरीक्षण और श्रीकृष्ण के द्वारा दुर्योधन के घर में आने का उदाहरण।
वर्तमान परिस्थितियों और नकारात्मक पहलुओं का विचार:
हालांकि "अतिथि देवो भव" की भावना महत्वपूर्ण है, इसके नकारात्मक पहलुओं को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह स्वागत विभाजन का कारण बन सकता है क्योंकि विशेष रूप से बड़े परिवारों में बड़ी संख्या में अतिथियाँ आने पर वित्तीय और सामाजिक प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है।
इसके साथ ही, अतिथियों के निरंतर आगमन से घरों की व्यवस्था में अस्तव्यस्तता हो सकती है और परिवार के सदस्यों के बीच संघर्ष पैदा हो सकता है। यह भी आर्थिक और शारीरिक संबंधों को दबा सकता है क्योंकि लंबे समय तक अतिथियों के आगमन से आराम और स्वास्थ्य के संकेत हो सकते हैं।
अतिथियों के आगमन के दौरान जनसंख्या की वृद्धि से अतिथि आवास की कमी भी हो सकती है, जो कि यात्रा के दौरान समस्याओं को बढ़ा सकती है। यह भी कुछ स्थितियों में स्वागत करने के लिए आवश्यक सामग्री और सुविधाओं की कमी को प्रकट कर सकता है।
समापन:
अतिथि देवो भव एक महत्वपूर्ण नैतिक और सांस्कृतिक मूल्य है जो हमें समझाता है कि हमें अपने आगंतुकों के साथ समझदारी, समर्पण और सम्मान से व्यवहार करना चाहिए। यह हमें समाज में मित्रता, सौहार्द और सदभाव की भावना पैदा करता है।
हालांकि इसकी महत्वपूर्णता को नकारात्मक पहलुओं के साथ समझना भी महत्वपूर्ण है। अतिथियों के नियमित आगमन से संघर्ष, आर्थिक समस्याएँ, और सामाजिक असंतुलन उत्पन्न हो सकते हैं, इसलिए इसके प्रभाव को नियंत्रित करने के उपायों को अपनाना भी महत्वपूर्ण है।